बारीश से अक्सर मिला करता था मैं
बारीश से अक्सर मिला करता था मैं
और तुमसे भी कभी कबार...
इत्तेफाकन् मगर तीनों इकठ्ठा कभी नही मिले हैं हम
इत्तेफाकन् मगर तीनों इकठ्ठा कभी नही मिले हैं हम
मिन्नते तो बहुत की थी मैने
बारीश से भी, तुमसे भी... मगर खैर...
अब की बार थान ली है मैने
तुम दोनों को साथ साथ ही मिलने की
अब की बार थान ली है मैने
तुम दोनों को साथ साथ ही मिलने की
इसिलिये अब आँखोमेंही बारीश लिये घूमता हूँ मैं...
उन्ही गलियों में...
जहाँ इत्तेफाकन् कभी तुम मिल जाओ शायद...
मिल जाओ शायद...
-संदीप खरे
वाह!!!
ReplyDeleteआभार संदिपजींचे !
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